Vikram Sarabhai century of 💯 birthday. GeniusJarvis.blogspot.com.
अहमदाबाद अहमदाबाद के एक अग्रणी कपड़ा व्यापारी के घर 12 अगस्त, 1919 को एक बेटे का जन्म हुआ। इस बच्चे के कानों पर सबकी नजर गई जो महात्मा गांधी की तरह बड़े-बड़े थे। हालांकि, उस वक्त शायद ही किसी को पता हो कि यह बच्चा भी आगे चलकर अपनी महानता से इतना मशहूर हो जाएगा कि देश-दुनिया का, अंतरिक्ष तक में अपनी छाप छोड़ेगा। यह बच्चा था विक्रम साराभाई। भारत की बहुप्रतीक्षित चंद्रयान 2 मिशन चांद की ओर जैसे-जैसे बढ़ रहा है, भारतीय स्पेस प्रोग्राम की सफलता की वह कहानी आगे बढ़ती जा रही है जिसकी नींव आगे चलकर साराभाई ने ही रखी थी। उनके जन्मदिन पर गूगल ने एक खास डूडल बनाया है।
बचपन से ही विज्ञान की ओर रुझानविक्रम का जन्म सुख-सुविधाओं वाले घर में हुआ था। यहां तक कि उनकी पढ़ाई उनके परिवार द्वारा बनाए गए एक ऐसे प्रयोगात्मक स्कूल में हुई जिसमें विज्ञान की ओर उनकी जिज्ञासा और जानकारी को धार देने के लिए एक वर्कशॉप भी मौजूद थी। साराभाई 18 साल की उम्र में पारिवारिक मित्र रबींद्रनाथ टैगोर की सिफारिश पर कैंब्रिज पहुंच गए। हालांकि, दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने पर वह बेंगलुरु के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. सीवी रामन के तत्वाधान में रीसर्च करने पहुंचे।
यूं बढ़ी रुचि
यहां उनकी मुलाकात प्रखर युवा विज्ञानी होमी भाभा से हुई। यहीं वह क्लासिकल डांसर मृणालिनी स्वामिनाथन से भी मिले जिनसे उन्हें प्रेम हो गया। अमैरिकन फिजिसिस्ट और नोबेल पुरस्कार विजेता रॉबर्ट मिलिकन जब कॉज्मिक रे इंटेंसिटी के वर्ल्ड सर्वे के लिए भारत आए, तो विक्रम ने अपने बलून एक्सपेरिमेंट से उनकी मदद की जिससे कॉज्मिक रेज और ऊपरी वायुमंडल के गुणों की ओर उनकी रुचि और बढ़ गई। करीब 15 साल बाद जब वैज्ञानिकों ने स्पेस के अध्ययन के लिए सैटलाइट्स को एक अहम साधन के रूप में देखा, तो पंडित जवाहरलाल नेहरू और होमी भाभा ने विक्रम साराभाई को चेयरमैन बनाते हुए इंडियन नैशनल कमिटी फॉर स्पेस रीसर्च की स्थापना के लिए समर्थन दिया।
नजदीकी जिंदगियों ने सिखाया
भले ही साराभाई का परिवार संपन्न था, माना जाता है कि अपने नजदीकियों की जिंदगी से सीखकर ही उन्होंने विज्ञान, खासकर स्पेस प्रोग्राम का इस्तेमाल भारत के गरीब लोगों की मदद के लिए करने का निश्चय किया। विक्रम ने बचपन में अपनी एक रिश्तेदार से कपड़ा मिलों में काम करने वाले मजदूरों के संघर्षों की कहानियां सुनीं। आजादी के आंदोलन के वक्त उनकी मां और बहन को जेल जाना पड़ा। उनकी छोटी बहन गीता की हालत यह सब देखकर काफी खराब हो गई। कुछ साल बाद उनके भाई की भी अचानक बीमारी से मौत हो गई। इन सब अनुभवों से उनके अंदर सामाजित चेतना जागी जिसने उन्हें बेहतर टेक्नॉलजी का इस्तेमाल कर लोगों की जिंदगी बेहतर बनाने का निश्चय किया।
साराभाई ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेंजमेंट, अहमदाबाद, दर्पण अकैडमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स, नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिजाइन, कई सफल व्यापारों की नींव रखी। वह मैसचूसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी में विजिटिंग प्रफेसर रहे और होमी भाभा के निधन के बाद कुछ वक्त तक अटॉमिक एनर्जी कमीशन को भी संभाला।
नए नजरिये पर जोर
विक्रम हमेशा एक वैज्ञानिक के तौर पर सोचते थे। उनका कहना था कि जिस शख्स ने विज्ञान के तरीकों को खुद में उतार लिया है, वह किसी स्थिति को एक नए नजरिये से देखता है। शायद यही कारण था कि विक्रम के काम करने के तरीके में इनोवेशन, इंटरप्राइज और इंप्रवाइजेशन सबसे अहम था। यहां तक कि उन्होंने स्पेस प्रोग्राम की शुरुआत तिरुवनंतपुरम के एक गांव थुंबा से की जहां न ही इन्फ्रास्ट्रक्चर था और न ही वहां बने ऑफिस में छत। ऐसे में भी युवा भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम टेक्नॉलजी, प्रॉपलेंट्स, नोज कोन्स और पेलोड जैसी चीजें बनाते थे।
पहले ही तैयार कर लिया भविष्य का खाका
साराभाई के साथ काम करने वाले वसंत गोवारिकर बताते हैं, 'हम हर वक्त बड़ा सोचते थे।' साराभाई के तरीके कड़े होते थे। वह बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रतियोगिता पैदा करते थे। गोवारिकर का कहना है कि साराभाई हर चीज को खुद बनाने पर जोर देते थे जिससे प्रेरणा मिलती थी। नवंबर 1963 में पहला ब्लास्ट-ऑफ हुआ और विक्रम ने घर पर टेलिग्राम भेजकर रॉकेट शॉट की खबर दी। साराभाई ने 15 अगस्त 1969 को इंडियन स्पेस रीसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) की स्थापना की। विक्रम का निधन 52 साल की उम्र में 30 दिसंबर, 1971 को अचानक ही हो गया। तब तक स्पेस प्रोग्राम से हजारों की संख्या में स्टाफ जुड़ गया था और वह टेक्नॉलजी से लेकर कृषि, जंगल, महासागर, भूविज्ञान और कार्टॉग्रफी तक के भविष्य का खाका तैयार कर चुके थे।
सादगी और सरलता ने बनाया महान
साराभाई न सिर्फ अपने काम से, बल्कि सरल-स्वभाव से भी जाने जाते थे। कहा जाता है कि कभी दुनिया के सबसे खास लोगों के साथ बैठने वाले विक्रम अपनी लैबरेटरी में चप्पल पहने, सीटी बजाते हुए दिखते थे। वह अपना ब्रीफेकस भी खुद ही लेकर चलते थे। डॉ. पद्मनाथ जोशी बताते हैं कि विक्रम के साथ हुई 10 मिनट की मुलाकात ने उनकी जिंदगी बदल दी।
जोशी बताते हैं कि जब वह उनसे स्पेस टेक्नॉलजी और सामाजिक-आर्थिक सर्वे के बीच संबंध जानने विक्रम से मिलने पहुंचे तो देखा कि कमरे में सिर्फ एक लकड़ी की मेज और कुर्सियां थीं। एसी की जगह पंखा ही था। जोशी का कहना है कि साराभाई इतने सरल थे कि कभी सूट पर चप्पल पहन लेते थे। वह देश के प्रधानमंत्री से भी वैसे ही बात करते थे, जैसे अपने जूनियर्स से। विक्रम को सपने देखने वाला व्यक्ति कहा जाता था और आज उनके देखे सपने भारत को चांद पर पहुंचा रहे हैं।
अहमदाबाद, 11 अगस्त (भाषा) गुजरात में मोरबी जिले के कल्याणपुर गांव में आयी बाढ़ के दौरान दो बच्चों को कंधे पर बैठाकर वहां से निकालने वाले एक पुलिस कांस्टेबल की मुख्यमंत्री विजय रूपाणी समेत कई लोगों ने प्रशंसा की हैं। कांस्टेबल के इस बहादुरी भरे कार्य का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। कांस्टेबल पृथ्वीराज सिंह जडेजा टंकारा पुलिस थाने में नियुक्त हैं। शनिवार को अन्य पुलिसकर्मियों के साथ वह कल्याणपुर गांव पहुंचे थे जहां उन्हें पता चला था कि क्षेत्र में लगातार बारिश की वजह से गांव में आयी बाढ़ में 17 बच्चों समेत 42 लोग फंसे हुए हैं। पुलिसकर्मियों को जब पता चला कि पानी का स्तर बढ़ता जा रहा है तो उन्होंने स्थानीय तैराकों और ग्रामीणों के साथ बचाव अभियान चलाया। वहां फंसे लोगों को निकालने के लिये उन्होंने अस्थायी नौका बनायी। हालांकि जडेजा ने वहां फंसे दो बच्चों को अपने कंधे पर बैठाकर ही वहां से सुरक्षित निकालने का फैसला किया। घुटने तक पानी में करीब 800 मीटर चलकर उन्होंने बच्चों को सुरक्षित जगह पहुंचाया। उनके एक सहयोगी ने बताया कि इस दौरान जडेजा के पैर में चोट भी आयी। उनके इस सहयोगी ने उन्हें प्राथमिक उपचार मुहैया कराने में मदद की। पुलिस की टीम ने आखिरकार बाढ़ में फंसे ग्रामीणों को निकालकर उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया। जडेजा ने कहा, ‘‘हमने जो कुछ भी किया वह हमारी ड्यूटी थी। मेरे दिमाग में जो बात सबसे पहले आयी वह यह थी कि कैसे 42 ग्रामीणों को बचाया जाये, जिनमें 17 बच्चे भी थे। जलस्तर बढ़ने के कारण इन सभी ने गांव में ही एक जगह शरण ले रखी थी।’’ उन्होंने बताया, ‘‘हम लोग उस जगह पहुंचे और उन्हें बचाने का फैसला किया। हमने उन्हें निकालने के लिये नाव भी बनायी।’’ मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने भी शनिवार की शाम को कांस्टेबल के इस कार्य की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री ने शाम को मुझसे बात की और कहा कि आपने तथा आपकी टीम ने जो कुछ भी किया वह तारीफ के काबिल है। ऐसे ही अच्छा काम करते रहिए...। मुझे मामूली चोट भी आयी जिसमें मेरे सहयोगी फिरोज खान पठान ने मेरी मदद भी की।’’
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Google Doodle: भारत को अंतरिक्ष में पहुंचाने वाले विक्रम साराभाई को गूगल डूडल का सलाम
टाइम्स न्यूज नेटवर्क | Updated: 12 Aug 2019, 01:44 AM
भारत को अंतरिक्ष तक पहुंचाने वाले वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के जन्मदिन पर गूगल ने डूडल समर्पित किया है। भारतीय स्पेस प्रोगाम की मदद से आम लोगों की जिंदगी सुधारने का सपना देखने वाले साराभाई का जन्म 12 अगस्त, 1919 को हुआ था।
विक्रम साराभाई के जन्मदिन पर गूगल डूडल
हाइलाइट्स:
- चंद्रयान 2 मिशन चांद की ओर जैसे-जैसे बढ़ रहा है, भारतीय स्पेस प्रोग्राम की सफलता की वह कहानी आगे बढ़ती जा रही है
- इस मिशन की नींव महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई ने ही रखी थी, उनके जन्मदिन पर गूगल ने एक खास डूडल बनाया है
- 12 अगस्त, 1919 को हुआ था साराभाई का जन्म, बचपन में उनके कानों पर सबकी नजर गई जो महात्मा गांधी की तरह बड़े थे
बचपन से ही विज्ञान की ओर रुझानविक्रम का जन्म सुख-सुविधाओं वाले घर में हुआ था। यहां तक कि उनकी पढ़ाई उनके परिवार द्वारा बनाए गए एक ऐसे प्रयोगात्मक स्कूल में हुई जिसमें विज्ञान की ओर उनकी जिज्ञासा और जानकारी को धार देने के लिए एक वर्कशॉप भी मौजूद थी। साराभाई 18 साल की उम्र में पारिवारिक मित्र रबींद्रनाथ टैगोर की सिफारिश पर कैंब्रिज पहुंच गए। हालांकि, दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने पर वह बेंगलुरु के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. सीवी रामन के तत्वाधान में रीसर्च करने पहुंचे।
यूं बढ़ी रुचि
यहां उनकी मुलाकात प्रखर युवा विज्ञानी होमी भाभा से हुई। यहीं वह क्लासिकल डांसर मृणालिनी स्वामिनाथन से भी मिले जिनसे उन्हें प्रेम हो गया। अमैरिकन फिजिसिस्ट और नोबेल पुरस्कार विजेता रॉबर्ट मिलिकन जब कॉज्मिक रे इंटेंसिटी के वर्ल्ड सर्वे के लिए भारत आए, तो विक्रम ने अपने बलून एक्सपेरिमेंट से उनकी मदद की जिससे कॉज्मिक रेज और ऊपरी वायुमंडल के गुणों की ओर उनकी रुचि और बढ़ गई। करीब 15 साल बाद जब वैज्ञानिकों ने स्पेस के अध्ययन के लिए सैटलाइट्स को एक अहम साधन के रूप में देखा, तो पंडित जवाहरलाल नेहरू और होमी भाभा ने विक्रम साराभाई को चेयरमैन बनाते हुए इंडियन नैशनल कमिटी फॉर स्पेस रीसर्च की स्थापना के लिए समर्थन दिया।
साराभाई ने की थी इसरो की स्थापना
नजदीकी जिंदगियों ने सिखाया
भले ही साराभाई का परिवार संपन्न था, माना जाता है कि अपने नजदीकियों की जिंदगी से सीखकर ही उन्होंने विज्ञान, खासकर स्पेस प्रोग्राम का इस्तेमाल भारत के गरीब लोगों की मदद के लिए करने का निश्चय किया। विक्रम ने बचपन में अपनी एक रिश्तेदार से कपड़ा मिलों में काम करने वाले मजदूरों के संघर्षों की कहानियां सुनीं। आजादी के आंदोलन के वक्त उनकी मां और बहन को जेल जाना पड़ा। उनकी छोटी बहन गीता की हालत यह सब देखकर काफी खराब हो गई। कुछ साल बाद उनके भाई की भी अचानक बीमारी से मौत हो गई। इन सब अनुभवों से उनके अंदर सामाजित चेतना जागी जिसने उन्हें बेहतर टेक्नॉलजी का इस्तेमाल कर लोगों की जिंदगी बेहतर बनाने का निश्चय किया।
साराभाई ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेंजमेंट, अहमदाबाद, दर्पण अकैडमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स, नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिजाइन, कई सफल व्यापारों की नींव रखी। वह मैसचूसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी में विजिटिंग प्रफेसर रहे और होमी भाभा के निधन के बाद कुछ वक्त तक अटॉमिक एनर्जी कमीशन को भी संभाला।
विक्रम साराभाई
नए नजरिये पर जोर
विक्रम हमेशा एक वैज्ञानिक के तौर पर सोचते थे। उनका कहना था कि जिस शख्स ने विज्ञान के तरीकों को खुद में उतार लिया है, वह किसी स्थिति को एक नए नजरिये से देखता है। शायद यही कारण था कि विक्रम के काम करने के तरीके में इनोवेशन, इंटरप्राइज और इंप्रवाइजेशन सबसे अहम था। यहां तक कि उन्होंने स्पेस प्रोग्राम की शुरुआत तिरुवनंतपुरम के एक गांव थुंबा से की जहां न ही इन्फ्रास्ट्रक्चर था और न ही वहां बने ऑफिस में छत। ऐसे में भी युवा भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम टेक्नॉलजी, प्रॉपलेंट्स, नोज कोन्स और पेलोड जैसी चीजें बनाते थे।
पहले ही तैयार कर लिया भविष्य का खाका
साराभाई के साथ काम करने वाले वसंत गोवारिकर बताते हैं, 'हम हर वक्त बड़ा सोचते थे।' साराभाई के तरीके कड़े होते थे। वह बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रतियोगिता पैदा करते थे। गोवारिकर का कहना है कि साराभाई हर चीज को खुद बनाने पर जोर देते थे जिससे प्रेरणा मिलती थी। नवंबर 1963 में पहला ब्लास्ट-ऑफ हुआ और विक्रम ने घर पर टेलिग्राम भेजकर रॉकेट शॉट की खबर दी। साराभाई ने 15 अगस्त 1969 को इंडियन स्पेस रीसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) की स्थापना की। विक्रम का निधन 52 साल की उम्र में 30 दिसंबर, 1971 को अचानक ही हो गया। तब तक स्पेस प्रोग्राम से हजारों की संख्या में स्टाफ जुड़ गया था और वह टेक्नॉलजी से लेकर कृषि, जंगल, महासागर, भूविज्ञान और कार्टॉग्रफी तक के भविष्य का खाका तैयार कर चुके थे।
पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की प्रतिभा को निखारने में अहम भूमिका
सादगी और सरलता ने बनाया महान
साराभाई न सिर्फ अपने काम से, बल्कि सरल-स्वभाव से भी जाने जाते थे। कहा जाता है कि कभी दुनिया के सबसे खास लोगों के साथ बैठने वाले विक्रम अपनी लैबरेटरी में चप्पल पहने, सीटी बजाते हुए दिखते थे। वह अपना ब्रीफेकस भी खुद ही लेकर चलते थे। डॉ. पद्मनाथ जोशी बताते हैं कि विक्रम के साथ हुई 10 मिनट की मुलाकात ने उनकी जिंदगी बदल दी।
जोशी बताते हैं कि जब वह उनसे स्पेस टेक्नॉलजी और सामाजिक-आर्थिक सर्वे के बीच संबंध जानने विक्रम से मिलने पहुंचे तो देखा कि कमरे में सिर्फ एक लकड़ी की मेज और कुर्सियां थीं। एसी की जगह पंखा ही था। जोशी का कहना है कि साराभाई इतने सरल थे कि कभी सूट पर चप्पल पहन लेते थे। वह देश के प्रधानमंत्री से भी वैसे ही बात करते थे, जैसे अपने जूनियर्स से। विक्रम को सपने देखने वाला व्यक्ति कहा जाता था और आज उनके देखे सपने भारत को चांद पर पहुंचा रहे हैं।
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बाढ़ में फंसे दो बच्चों को कंधे पर बैठाकर निकालने वाले कांस्टेबल की प्रशंसा
डिसक्लेमर:यह आर्टिकल एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड हुआ है। इसे नवभारतटाइम्स.कॉम की टीम ने एडिट नहीं किया है।
भाषा | Updated: 11 Aug 2019, 06:40 PM
अहमदाबाद, 11 अगस्त (भाषा) गुजरात में मोरबी जिले के कल्याणपुर गांव में आयी बाढ़ के दौरान दो बच्चों को कंधे पर बैठाकर वहां से निकालने वाले एक पुलिस कांस्टेबल की मुख्यमंत्री विजय रूपाणी समेत कई लोगों ने प्रशंसा की हैं। कांस्टेबल के इस बहादुरी भरे कार्य का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। कांस्टेबल पृथ्वीराज सिंह जडेजा टंकारा पुलिस थाने में नियुक्त हैं। शनिवार को अन्य पुलिसकर्मियों के साथ वह कल्याणपुर गांव पहुंचे थे जहां उन्हें पता चला था कि क्षेत्र में लगातार बारिश की वजह से गांव में आयी बाढ़ में 17 बच्चों समेत 42 लोग फंसे हुए हैं।
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Web Title : commendation for the constable who dragged two children stranded in the flood (hi News from Navbharat Times , TIL Network)
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Web Title : google doodle on birth anniversary of indian space program pioneer vikram sarabhai (hi Newsfrom Navbharat Times , TIL Network)
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